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डिजिटल रेडियो भविष्य का माध्यम

‘रेडियो की पुनर्कल्पना: डिजिटल युग में उन्नति' विषय पर वेव्स 2025 में सारगर्भित पैनल चर्चा, जिसमें एनालॉग माध्यम के भी सह-अस्तित्व में बने रहना चाहिए” पर भी जोर

मुंबई/ वेव्स 2025 में आज ‘रेडियो की पुनर्कल्पना: डिजिटल युग में उन्नति’ विषय पर आयोजित एक पैनल चर्चा में हिस्सा लेते हुए दुनियाभर के विशेषज्ञों ने एक सारगर्भित बातचीत की। प्रतिष्ठित पैनलिस्टों में वाणिज्यिक रेडियो की अग्रणी हस्ती जैकलीन बियरहोर्स्ट, डिजिटल रेडियो मोंडिएल (डीआरएम) के अध्यक्ष रुक्सेंड्रा ओब्रेजा, डीआरएम के वाइस ग्रुप लीडर अलेक्जेंडर जिंक, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ तथा डीप टेक फॉर भारत के सह-संस्थापक शशि शेखर वेम्पति और प्रसिद्ध प्रसारण प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ टेड लेवर्टी शामिल थे। रेड एफएम की निदेशक एवं सीओओ निशा नारायणन ने पूरी विशेषज्ञता के साथ इस बातचीत का संचालन किया और रेडियो प्रसारण उद्योग को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों पर प्रकाश डाला।

‘डिजिटल रेडियो भविष्य का माध्यम है, लेकिन एनालॉग को भी सह-अस्तित्व में बने रहना चाहिए’

जैकलीन बियरहोर्स्ट का मानना है कि भविष्य में संभावित रूप से डिजिटल रेडियो प्राथमिक प्रारूप होगा, क्योंकि यह बेहतर ध्वनि गुणवत्ता, अधिक विश्वसनीय प्रसारण और मल्टीमीडिया तत्वों को समन्वित करने की क्षमता जैसे लाभ प्रदान करता है। उन्होंने कहा, “भले ही एनालॉग रेडियो कुछ संदर्भों, विशेषकर सरल संचार के कारण और सीमित डिजिटल बुनियादी ढांचे वाले क्षेत्रों, में प्रासंगिक बना हुआ है, लेकिन डिजिटल प्रसारण की दिशा में बदलाव हो रहा है और इसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है।” उन्होंने बताया कि एनालॉग से बदलकर डिजिटल के क्षेत्र में आने से लागत की काफी बचत होती है।

हालांकि, जैकलीन बियरहोर्स्ट और अलेक्जेंडर जिंक ने कहा कि आतंकवादी हमलों, बाढ़ आदि जैसी आपात स्थितियों के दौरान, जब डिजिटल नेटवर्क हमेशा काम नहीं कर सकते, प्रसारण एक महत्वपूर्ण सहायता बिंदु होता है। डीआरएम के अध्यक्ष रुक्सेंड्रा ओब्रेजा ने इस बिंदु पर कहा कि भारत में एनालॉग रेडियो, जिसकी पहुंच 600,000 गांवों तक है, को संरक्षित रखना महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों ने कहा कि आपात स्थितियों में निस्संदेह प्रसारण रेडियो की अपेक्षाकृत अधिक लोगों तक पहुंचने की अधिक संभावना होती है। रुक्सेंड्रा ओब्रेजा ने कहा, “असली चुनौती पुरानी तकनीकों को बाधित किए बिना नई तकनीकों का समावेश करना है।"

रेडियो संचार के नए 5सी

जैकलीन बियरहोर्स्ट ने शास्त्रीय 5सी - यानी संक्षिप्तता, स्पष्टता, आत्मविश्वास, नियंत्रण और क्षमता - का उल्लेख किया और उन्हें उन नए 5सी के साथ जोड़ा जो एक उन्नत डिजिटल रेडियो अवसंरचना वाले युग में आवश्यक हैं। ये नए 5सी हैं: कवरेज, कंटेंट, उपभोक्ता उपकरण, कार, संचार। उन्होंने यह सुनिश्चित करने की सलाह दी कि रेडियो नेटवर्क उन सही क्षेत्रों को कवर करे जहां श्रोता स्थित हैं।

श्रोताओं की संख्या को मापना इस क्षेत्र को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से ठोस प्रयास करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। टेड लेवर्टी ने रेडियोप्लेयर और रेडियो एफएम जैसे यूरोप के रेडियो प्लेइंग ऐप के बारे में बात की, जो ऐसी सुविधाएं प्रदान करते हैं जिनका उपयोग बिना गोपनीयता का उल्लंघन किए श्रोताओं की संख्या मापने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने सलाह दी कि ऐसे कार्यक्रमों एवं ऐप, सैंपल सर्वे और सुनने से संबंधित डायरियों का उपयोग भारत में भी रेडियो श्रोताओं के हॉटस्पॉट का विश्लेषण करने के लिए किया जा सकता है।

अच्छा कंटेंट, सहयोग, क्रॉस प्लेटफॉर्म प्रमोशन बेहतर होता है

‘कंटेंट ही सर्वोपरि है’ - विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र के लिए सफलता के इस मंत्र पर सहमति जताई। निशा नारायणन ने निजी एफएम चैनलों को पेश आने वाली विभिन्न प्रकार के कंटेंट के लिए उच्च लाइसेंस शुल्क की समस्या को रेखांकित किया। परिणामस्वरूप, वे चैनल ज्यादातर लोकप्रिय संगीत परोसते हैं, जिसकी लाइसेंस फीस अन्य श्रेणियों के कंटेंट की तुलना में कम होती है। रेड एफएम की सीओओ ने निजी एफएम चैनलों द्वारा कंटेंट में विविधता लाने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।

अच्छे एवं उपयोगी कंटेंट के मूल्य के बारे में बोलते हुए, जैकलिन बियरहोर्स्ट ने ब्रिटिश डिजिटल रेडियो स्टेशन ‘एब्सोल्यूट रेडियो’ की सफलता की कहानी पर प्रकाश डाला।  इस रेडियो स्टेशन ने 70, 80 और 90 के दशक के दौरान विभिन्न शैक्षणिक एवं प्रचारात्मक गतिविधियों, जिससे उनके श्रोताओं को लाभ हुआ, में संलग्न रहते हुए उन्नति की तथा राजस्व अर्जित किया।

डिजिटल रेडियो के एक और पहलू की याद दिलाते हुए, अलेक्जेंडर जिंक ने कहा कि डिजिटल रेडियो में ऑडियो कंटेंट के अलावा और भी बहुत कुछ है - इसमें दृश्य एवं पाठ्य अनुप्रयोग भी हैं जो श्रोताओं के बढ़ते आधार के लिए लाभदायक हैं।

टेड लेवर्टी ने कहा कि रेडियो श्रोताओं की संख्या बढ़ाने के लिए एक उपयुक्त इकोसिस्टम की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कम लागत वाले उपकरण बनाना तथा एंड्रॉइड जैसे अनुकूल प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध होना ऐसे कुछ उपाय हैं। बाहरी हार्डवेयर घटकों के अस्तित्व के अलावा, कंटेंट की विविधता भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह श्रोताओं के विभिन्न उप-समूहों को संबोधित करने में मदद करती है।

जलवायु परिवर्तन और डिजिटल रेडियो

डिजिटल रेडियो अपेक्षाकृत अधिक कुशल मॉड्यूलेशन तकनीकों का उपयोग करके और एकल-आवृत्ति वाले नेटवर्क को सक्षम करके ऊर्जा की उल्लेखनीय बचत कर सकता है। हालांकि, एफएम स्टेशनों को बंद करना संभव नहीं है। रुक्सेंड्रा ओब्रेजा ने कहा कि कुछ यूरोपीय देशों ने भले ही एफएम स्टेशनों को पूरी तरह से बंद करने और पूर्ण डिजिटलीकरण का प्रयास किया है, लेकिन यह उपयुक्त रास्ता नहीं है । उन्होंने सुझाव दिया कि नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए सरकार से बात करते समय वाणिज्यिक रेडियो स्टेशनों की ज़रूरतों को सूचीबद्ध करना महत्वपूर्ण है। 

भारत में रेडियो उद्योग - इकोसिस्टम को मजबूत करने की संभावनाएं

रुक्सेंड्रा ओब्रेजा ने बताया कि यूरोप में सार्वजनिक नीतियों ने डिजिटल रेडियो की पहुंच को प्रोत्साहित किया है। कारों व मोबाइल फोन में रेडियो होना तथा बाजार में रेडियो सेट की आसान उपलब्धता इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में एक डिजिटल रेडियो कंसोर्टियम बनाया जाना चाहिए।

रुक्सेंड्रा ओब्रेजा ने कहा कि भारत डिजिटल रेडियो के क्षेत्र में एक अग्रणी शक्ति है। डिजिटल से स्थलीय रेडियो जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही आवश्यक डिजिटल से मोबाइल रेडियो भी है। उन्होंने कहा, “प्रसार भारती की पहुंच करीब 90 करोड़ लोगों तक है। भारत में इस क्षेत्र में एक सुनहरा अवसर है, क्योंकि भारत में मोबाइल फोन के अरबों उपयोगकर्ता हैं। इन सकारात्मक बिंदुओं पर काम करना महत्वपूर्ण है।”

शशि शेखर वेम्पति ने कहा कि भारत रेडियो के लिए सबसे बड़ा बाजार है और उन्होंने इस माध्यम को मौलिक लोकहित के रूप में निरूपित किया। उन्होंने इस क्षेत्र के लिए समन्वित सार्वजनिक कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने देश में इस क्षेत्र के लाभों को रेखांकित करते हुए कहा, “रेडियो कहीं नहीं जा रहा है। भारत में रेडियो के उपभोक्ता समाज के विभिन्न वर्गों से आते हैं।” नीतिगत हस्तक्षेपों में कुछ निश्चित श्रेणियों के उपकरणों में रेडियो की उपलब्धता जैसे कुछ शर्त शामिल हो सकते हैं। एआई संचालित उपकरणों के साथ-साथ पारंपरिक रेडियो जैसे निष्क्रिय उपकरणों को भी साथ-साथ बने रहना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन सार्वजनिक नीतियों का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है, इसलिए पारंपरिक उपकरणों को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। टेड लेवर्टी ने रेडियो उपकरण निर्माताओं को प्रोत्साहित करने हेतु ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं का उपयोग करते हुए भारत में रेडियो के इकोसिस्टम को उन्नत करने का आग्रह किया।

विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भारत तथा अन्य स्थानों पर डिजिटल रेडियो ही आगे की राह है तथा उन्होंने बड़े शहरों में साझा प्रसारण अवसंरचना (कॉमन ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर) वाले वाणिज्यिक स्टेशनों से सहयोग का एक मंच तैयार करने का आग्रह किया।

PIB

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सम्पादक

डॉ. लीना