उर्मिलेश/ न्यूज़ चैनलों ने अपने स्टूडियो में ‘वार-रूम’ बनायें है. शायद ‘वार’ भी चाहते होंगे! टीआरपी उछलेगी तो कमाई भी! इनके चलाने वाले जानते हैं कि आज के दौर में हर युद्ध मनुष्यता के हितों की क़ीमत पर होता है! पर इनके 'कवरेज' में सिर्फ युद्धोन्माद नजर आता है, समझ और विवेक सिरे से गायब! पता नहीं ये समाज और मनुष्यता को कहां ले जाना चाहते हैं?
पता नहीं, इनमें कितनों ने वास्तव में किसी युद्ध को 'कवर' किया है? कितनों ने किसी युद्ध के राजनीतिक अर्थशास्त्र को समझा है? युद्ध में मरते-कटते और पिसते लोगों की पीड़ा महसूस की है?
दुनिया का हर समझदार व्यक्ति (चाहे उसकी जो भी विचारधारा हो) कहता है कि आज के दौर में मुल्कों के आपसी मसलों और विवादों के समाधान के लिए कूटनीति ही सही विकल्प है; युद्ध नहीं! पर हमारे टीवीपुरम् में युद्धोन्माद मचाने की होड-सी मची हुई है. अगर आपमें मीडिया और पत्रकारिता का थोड़ा कुछ भी बचा होता तो ऐसी ह्रदयहीनता न होती! राजनीति हृदयहीन हो सकती है पर साहित्य, पत्रकारिता और मीडिया नहीं!