विनीत कुमार/ पहले एनडीटीवी और फिर बाद में सीएनएन-आईबीएन पर जब मैं राजदीप सरदेसाई को एंकरिंग करते देखा करता तो बहुत संभव है कि सौरभ( सौरभ द्विवेदी ) भी देखा करते होंगे और मेरी तरह सोचते होंगे कि एक दिन मुझे भी टीवी पर दिखना है.
राजदीप जब सरसों सी फिसलती अंग्रेजी स्क्रीन पर पूरी अदा से बोलते तो अपनी भी हसरत होती कि काश ! मैं भी ऐसी अंग्रेजी बोल पाता. आज सौरभ ने अपनी हिन्दी का ही ऐसा भौकाल बना लिया है कि ऐसी अंग्रेजी बोलने या सीखने की ज़रूरत नहीं पड़ती होगी. लेकिन
क्या राजदीप इतने गए बीते हैं कि सौरभ उनसे बिल्कुल तू-तड़ाक अंदाज़ में बात करने लग जाएं और राजदीप ऐसा करने के लिए उनके शो में उपलब्ध रहें ? इस सिरे से आप सोचना शुरु करेंगे तो हो सकता है, कुछ को ये बात दिल पर लग जाएगी कि सौरभ द्विवेदी का राजदीप से बात करने का तरीक़ा है वो कहीं से भी एक पत्रकार का अंदाज़ नहीं हो सकता, ये तो सरासर बदतमीज़ी है और राजदीप उस बदतमीज़ी को बर्दाश्त करते हैं.
यह भी संभव है कि सौरभ को चाहनेवाले ऐसे हजारों युवाओं का मन उत्साह से भर जाता होगा जो ख़ुद तो एक लाइन अंग्रेजी या हिन्दी में ठीक से भले न बोल पाते हों लेकिन सौरभ सर/सौरभ भैया के साथ सेल्फी खिंचवाकर लल्लनटॉप नज़र आने लग जाते हैं. वाह ! क्या सही से राजदीप को धोया है भैया/सर ने..इस भाव के अलावा उनके भीतर भला और कौन सा प्रभाव पैदा होता होगा ?
हम सब स्कूल-कॉलेज के दिनों में सपने देखा करते हैं. उन सपनों में किसी न किसी रूप में कोई चेहरा-कोई शख़्स ज़रूर शामिल हुआ करता है. ये रोल मॉडल न भी हों तो भी हमारे सपनों को आकार देने में आउटलाइन के काम आते हैं. हमने जिस दौर में सपने देखे, उस वक़्त बाक़ी पत्रकार-एंकर की तरह राजदीप सरदेसाई भी ऐसे ही रहे. हमारे सपने पूरे भी हुए. सौरभ के कुछ और ढंग से हुए कि वो आज राजदीप से तू-तड़ाक अंदाज़ में बात करते हुए एक नया मॉडल/नज़ीर पेश कर रहे हैं.
उपरी तौर पर लगता है कि सौरभ में कितना साहस है..फिर लगता है कितना बदतमीज़ है..फिर लगता है-कितना बेशऊर है ! मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता.
मुझे पता है कि दोनों एक मीडिया संस्थान के मीडियाकर्मी हैं. स्क्रीन पर जिस तल्ख़ी से बात करते हैं, यदि उनमें सचमुच ऐसा होता तो मालिक अगले ही दिन बिठाकर मीटिंग कर लेते कि भाई ये क्या आपलोग बिग बॉस-बिग बॉस खेल रहे हो ? लेकिन नहीं,
ये एक नया मॉडल तैयार करने की कोशिश है जो कि सांसद के वेतन बढ़ने और सौरभ द्विवेदी की टिप्पणी किए जाने के बाद विधिवत ढंग से शुरु हुई. कईयों ने इस बहाने सौरभ के साहस को सलाम किया कि राजदीप से इस अंदाज़ में बात करने की हिम्मत की. बंदा दिलेर है. अब फिर पहलगाम मामले में कवरेज को लेकर ऐसा ही वीडियो सामने आया जिसमें राजदीप सौरभ के आगे ख़ुद को संघर्षशील और सौरभ को सुविधा सम्पन्न संपादक बताने की कोशिश करते नज़र आते हैं तो सौरभ का पूरा अंदाज़ है कि गुरुजी ! अब थम जाओ, आपके और आपकी हिप्पोक्रेसी के दिन लद गए.
मैं यह सब देखकर सिर्फ इस सिरे से सोचता हूं- कल तक राजदीप को देखकर हम जैसे हजारों युवा ने अपने सपनों की आउटलाइन की तरह लगातार देखा, सुना और बहुत कुछ सीखने की कोशिश की तो आज यही काम आज के हजारों युवा सौरभ को देखकर कर रहे हैं. वो सौरभ की तरह जब बनेंगे-तब बनेंगे लेकिन गमछा अभी से ही धारण कर लिया है और बहुत जल्द ही ऐसी तू-तड़ाकवाली भाषा भी अपना लेंगे. सवाल है कि ऐसा करने के बाद सौरभ ने ख़ुद को बनाने में जो संघर्ष किया है, खपाया है और एक निथरी हुई भाषा अख़्तियार करने में अभी-अभी तक दर्जनों किताबों की ख़ाक छानते रहते हैं, ये सब इन युवाओं तक पहुंच सकेगा ? वो इन दो दिग्गजों के इस शातिर बिजनेस मॉडल को कभी पकड़ सकेंगे जिसके आगे दोनों ने अपने बेहद आत्मीय संबंध और लगाव को पर्दे पर ही सही, दांव पर लगा दिया है.
मैंने उस दौर को बेहद क़रीब से देखा है जब राजदीप के लिए देश में हिन्दी का एक ही उभरता पत्रकार नज़र आता- सौरभ द्विवेदी. वो उसकी तारीफ़ करते न थकते. मुझे नहीं मालूम कि इस रज़ामंदी मॉडल के दोनों एक-दूसरे का अपमान करके ऐसा क्या हासिल कर लेंगे जो अभी इनके पास नहीं है.
इनके पास वो सब है लेकिन इन्हें देखकर जो हजारों युवा इनकी तरह शोहरत के मक़ाम तक पहुंचने में लगे हैं, उन तक ज़रूर इनका बहुत कुछ किया, लिखा-पढ़ा पहुंचने के बजाय महज एक थेथरई पहुंचेगी. हम पहले से कम कैंसिल कल्चर और किसी तरह ख़ुद को पॉलिटिकली करेक्ट होने की मार झेल रहे हैं जो ये दोनों एक नए मॉडल के साथ मैंदान में उतर आए हैं.
मुझे दोनों के लिए अफ़सोस तो है ही, देश के उन हजारों युवाओं के लिए है जिनके भीतर सौरभ द्विवेदी की आत्मा प्रवेश पाना चाहती हैं. कल को इनमें से कोई वहां तक पहुंच जाय और जो काम आ ज सौरभ राजदीप के साथ कर रहे हैं, ये सुवा सौरभ के साथ करेंगे..मेरे लिए वो बेहद उदास कर देनेवाला दिन होगा.
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