एक इनके स्टार एंकर्स और एक ये जिनके पास रिपोर्टिंग के लिए ढंग से बुनियादी चीज़ें भी नहीं हैं
विनीत कुमार/ अंजनाऽऽ..अंजनाऽऽऽऽ.. यहां धमाके की आवाज़ सुनाई दे रही है..
फुसफुसाते हुए, बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में आजतक का रिपोर्टर जब हमारी स्क्रीन पर होते हैं तो हमारे भीतर यह भाव पैदा ही नहीं होता कि देश के तथाकथित सबसे तेज और कभी दूरदर्शन से भी ज़्यादा भरोसेमंद रहे चैनल का एक रिपोर्टर अपनी जान-जोख़िम में डालकर हम दर्शकों को हालात से अवगत करा रहा है. हमें बल्कि अफ़सोस होता है कि जिस हुलिए के साथ वो मैंदान में उतरे हैं, उतने बेतरतीब और आउटडेटेड गेजेट्स के साथ तो पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा प्रथम वर्ष का बिटुआ भी टिक-टॉक करने नहीं जाता. लिहाजा,
मेरा पूरा ध्यान रिपोर्टर के कान से झूलते कनठेपी( ईयरफोन) और मोबाईल पर जाकर अटक गया. मोबाईल पर चढ़ा प्लास्टिक कवर जाने कितने साल पुराना है कि एकदम से पीला पड़ गया है. वो भी इतना गंदा की चढ़ाने के बाद शायद ही कवर निकालकर पोंछने का काम किया गया हो.
अब ढंग के मोबाईल में तारवाले ईयरफोन बंद हो गए हैं. रिपोर्टर अपनी जिस स्टार एंकर से फुसफुसाते हुए, नाटकीय अंदाज़ में हालात का ज़ायजा साझा कर रहे हैं, उनकी दुनिया में ऐसे ईयरफोन पुरा पाषाण युग की याद दिलाते होंगे. अब आप सोचिए कि आजतक के इस रिपोर्टर के पास कौन सा फोन और वो भी कितना पुराना होगा !
फोन और ईयरफोन से ध्यान तब हटता है जब वो फुसफुसाते हुए बात करने के बीच अचानक से दौड़ने लग जाते हैं. स्टूडियो में बैठी एंकर अंजना ओम कश्यप निर्देश देती हैं कि कैमरामैन से कहो कि लाइट कम करें. अब ध्यान जाता है कि ये रिपोर्टर कैसे बिना सुरक्षा इंतज़ाम के, बिना हेलमेट लगाए ऐसी जगह पहुंचते हैं जहां धमाके की आशंका है. इतने नाज़ुक माहौल में चैनल ने किस कैमरामैन को मैंदान में उतारा है जिसे गुड्डी परिणय कौशल की शादी के वीडियो बनाने में इस्तेमाल होनेवाली लाइट और हमाके होने की आशंकावाले क्षेत्र में लाइट के प्रयोग का फर्क़ नहीं मालूम.
ये देश का नंबर वन चैनल है जिसके एंकर सौ चुनावी क्षेत्र कवर करने के लिए चॉपर का इस्तेमाल करते है. लेडी सिंघम के अंदाज़ में जब इनकी एंकर लोकसभा चुनाव के दौरान उतरतीं तो लोग भकुआकर कभी चॉपर तो कभी इनके अंदाज़ को देखने लग जाते. उस चैनल के संवाददाता के पास न तो ढंग का मोबाईल फोन है, न कवर और न ही ईयरफोन. बाक़ी नाज़ुक मसअले पर कैसी भाषा और भाव-भंगिमा और संजीदगी होनी चाहिए, ये तो दूर की बात है.
मैं जब इस क्लिप से गुज़रा तो यही सोचने लगा कि डिजायनर सूट, ब्रांडेड कुर्ता-शेरवानी, मंहगी घड़ियां, गॉगल्स और मुरेठा/टाई बांधे इनके स्टार एंकर्स जब अपने ऐसे रिपोर्टर से मिलते होंगे तो कभी महसूस भी करते होंगे कि हमने देश क्या, एक चैनल के भीतर ही कैसे दो दुनिया बना ली है. एक जिसमें हम हैं और हम ही हम हैं और एक ये जिनके पास रिपोर्टिंग के लिए ढंग से बुनियादी चीज़ें भी नहीं हैं और शोहरत में ये कहीं नहीं हैं.
सोचते हुए लगा कि चैनल की इस गोल्डन माईक के पीछे कितना अंधेरा है, कितनी ग़ैरबराबरी है और कितने मोर्चे पर इसके स्याह पक्ष पसरे हैं.
(विनीत कुमार के फेसबुक वाल से साभार https://www.facebook.com/vineetdu )