यह मगही फिल्म आंचलिक भाषा की फिल्मी दुनिया में खूब धूम मचा रही है
डॉ राशि सिन्हा (नवादा बिहार)/ प्रभात वर्मा निर्देशित फिल्म विधना नाच नचावे महज एक फिल्म ही नहीं वरन् अपनी लोक संस्कृति की व्याख्या करते हुए अपनी लोक भाषा को पुरानी पीढ़ी से उठाकर नई पीढ़ी तक की पहचान बनाने का बीड़ा है, जो आज सफल होता दिख रहा है। बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि फिल्म जगत में स्थापित भाषाओं की फिल्में भी पर्दे पर कोई खासा कमाल नहीं दिखा पातीं, कभी कभी तो 30-35 से ज्यादा भीड़ भी नहीं जुटा पातीं किंतु, इस लिहाज से प्रभात वर्मा की 'प्रभात फिल्म्स प्रोडक्शन' तले बनी यह फिल्म "विधना नाच नचावे" ने सच में एक मिशाल पेश किया है। अपने पहले दिन से लेकर अब तक इस फिल्म ने न केवल दर्शकों की संख्या में धमाके पे धमाके किये हैं,बल्कि दर्शकों का प्यार व तालियां बटोरती यह फिल्म आंचलिक भाषा की फिल्मी दुनिया में खूब धूम मचा रही है, जो निश्चित इसकी सफलता का शुभ सूचक है।
गांव की एक प्रेम कथा पर आधारित फिल्म "विधना नाच नचावे" पूरी तरह से एक पारिवारिक फिल्म है, जो कि एक अनाथ लड़की के जीवन पर केंद्रित है, इस फिल्म के कलाकारों मे स्वयं निर्माता, निर्देशक, कथाकार, पटकथा और गीतो के रचयिता प्रभात वर्मा ने अपनी कलाकारी के जलवे मास्टर दरोगी के पात्र में बिखेर कर अपने अभिनय क्षमता का भरपूर प्रदर्शन किया है, तो छोटी रधिया बनी अंशिका वर्मा के कमाल के अभिनय का दर्शक कायल होते है। मास्टर दरोगी के बडाहील की भूमिका निभाने वाले मुकेश चित्रांश की अभिनय बाली बात निराली है, इस फिल्म के नायक कृतन अजीतेश और नायिका द्वय बड़ी रधिया प्रियंका तथा सजनी एश्वर्या के साथ ही पंचायत प्रमुख चन्द्रमणि पाण्डेय, सेठानी बनी डॉक्टर सविता मिश्र, मौसी पुजा, आइटम सांग डान्सर पलक, प्रमिला, मीनी, मोनी खलनायक बने मजे कलाकार सरविन्द, राजेशगुडू, रणधीर, ब्रजेश, सतीश, गोपाल कृष्ण मिश्रा समेत कई अन्य कलाकारो ने अपनी कला प्रतिभा का लोहा मनवाया है। फिल्म मे संगीत मुम्बई के रितेश मिश्रा और पटना के पप्पू जिमी गुप्ता का है, गायक गायिकाओ मे मुम्बई के रूपेश मिश्रा तथा खुशवू उतम, सुमितभट्ट, आलोक चौवे, पूर्णिमा और साथी है। छायाकंन पी एस राठौर, राकेश रौशन,मुकेश चित्रांश ने की है।
दर्शकों की संवेदना को समझते हुए निर्देशक प्रभात कुमार वर्मा ने फिल्म की शुरुआती दृश्यों की प्रस्तुति बड़ी भावपूर्ण की है और इसे अंत तक बनाये रखा है,जो कि किसी भी पारीवारिक फिल्म की खासा ज़रुरत है। फिल्म के शुरुआती पलों में कहानी धीरे धीरे बढ़ती है लेकिन मध्यांतर से कुछ पहले कहानी गति पकड़ने लगती है और अंत होने के ठीक 45 मिनट पहले कहानी अपनी पूरी गति में आ जाती है, जो निर्देशन के हिसाब से दर्शकों को कौतुहलपूर्ण बांधकर रखने की एक बेहतरीन तकनीक है, जिसका प्रयोग प्रभात वर्मा के सफल निर्देशन में स्पष्टतया देखा जा सकता है.
किसी भी फिल्म की सफलता के लिए एक दमदार कहानी और उसकी दमदार प्रस्तुति दोनों ही बहुत आवश्यक कड़ी है। लेखक- निर्देशक प्रभात वर्मा की फिल्म विधना नाच नचावे पारीवारिक प्रष्ठभूमि की अपनी सशक्त कहानी के साथ प्रस्तुति की सामंजस्यता का भी अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।
चूंकि यह गांव की संस्कृति पर आधारित पारीवारिक फिल्म है अत: इसमे लोक संस्कृति, लोक -रिवाजों का विशेष ख्याल रखा गया है, जो फिल्म को विशिष्ट बना पाती है। धार्मिक लोक पर्व छठ व उसके गीत लोगों की श्रद्धा को छूने का काम करते हैं तो समसामयिक प्रकरण दर्शकों को पुन: मुद्दों की ओर खींच ले जाती हैं।
गीत-संगीत किसी भी फिल्म की सफलता के मूल तत्व होते हैं .प्रभात वर्मा जी की फिल्म विधना नाच नचावे में इसका खासा ख्याल रखते हुए कर्ण प्रिय पारीवारिक व प्रेमगीत ,विवाह के लोक गीत व लोक पर्व छठ के गीत के अलावे आइटम गाने को भी बखूबी परसा है जो कि निर्देशक के 'फिल्मी प्रोफेशनल फ्लेवर' को दर्शाता है अर्थात फिल्म में सामान्य संस्कारी पारिवारिक दर्शकों के साथ-साथ एक ऐसे दर्शक -विशेष का भी ख्याल रखा गया है जो कि महज थकान मिटाने और मनोरंजन के उद्देश्य से फिल्में देखने आते हैं। शीर्षक गीत विधना नाच नचावे में एक ह्रदय स्पर्श की एक अद्भुत क्षमता है। यह एक गीत पूरी कहानी का सार है और काफी स्पर्शी है।
प्रभात वर्मा की यह फिल्म एक भाषाई लड़ाई है अर्थात् सिनेमा के स्तर पर एक सशक्त आन्दोलन कही जा सकती है, जो मगही को ऊंची पहचान दिलाने की लड़ाई , अपनी आंचलिक भाषा को नवपीढ़ी की जुबान पर गौरवमयी भाषा के रूप में स्थापित करने की लड़ाई है। लिहाजा निर्देशक ने भाषायी सामंजस्यता का भरसक प्रयास किया है। गांव का माहौल और ग्रामीणों द्वारा प्रयुक्त आंचलिक भाषा मगही के विशेष टोन को ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है। भाषायी सामंजस्यता की बात करें तो छोटी रधिया व बड़ी रधिया के भाषायी टोन काफी मिलते जुलते हैं जो भाषायी प्रस्तुति को निखारने का कार्य करती है। इसी संदर्भ में एक दो पात्र भाषायी स्तर पर काफी नाटकीय भी दिखते हैं किंतु उनकी अल्पकालीन प्रस्तुति से यह बात गौण हो जाती है.
पात्रों के अभिनय की बात करें तो कुछ प्रमुख पात्र काफी अच्छे अभिनय में हैं तो कुछ के अभिनय से फिल्म में कहीं कहीं नाटकीयता उभर आती है। कहीं कहीं पर एक दो दृश्यों का ताल मेल एडिटिंग की कमी निरर्थक होना सा लगता है। पूरी फिल्म काफी अच्छी बन पड़ी है, किंतु यदि हास्य का तड़का लगता तो यह और भी पूर्ण हो जाती पर फिल्म पर उसका कोई खासा असर नहीं पड़ता दिखाई देती है।
कुल मिलाकर विधना नाच दिखावे एक काफी मनोरंजन व सामाजिक उद्देश्यों से पूर्ण मनोरंजन से भरपूर एक पारिवारिक फिल्म है, जिसके माध्यम से आंचलिक भाषा मगही को पहचान दिलाने का जो बीड़ा लेखक निर्देशक प्रभात वर्मा ने उठाया है वह पूरा होता दिखाई देता है।
डॉ राशि सिन्हा