संबंधित एक्ट की स्थिति बिहार में चिंताजनक : पिंचा
पटना। मीडिया ने विकलांगों की आवाज को हमेशा बुलंद किया है लेकिन इवेंट अर्थात् घटनाओं पर आधारित नहीं इशू अर्थात् उनके मुद्ददों-मसलों को लेकर सपोर्ट करे तो बेहतर होगा। यह बात मुख्य सचिवालय परिसर स्थित अनुसूचित जाति/जनजाति सभागार में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए मुख्य आयुक्त निःशक्तता-भारत सरकार, नई दिल्ली श्री प्रसन्न कुमार पिंचा ने कहीं। जन्मना दृष्टिबाधित रहते हुए भी अपनी प्रखर मेधा के आधार पर गैर विकलांग श्रेणी में वरीय भारतीय प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारियों से प्रतिस्पर्धा के बाद उक्त पद पर आसीन श्री पिंचा को भारत सरकार में सचिव स्तर का दर्जा प्राप्त है।
श्री पिंचा ने इस पद पर रहते हुए बिहार का प्रथम दौरा किया और अपने तीन दिवसीय दौरे के अंतिम दिन संवाददाताओं को बताया कि वर्ष 1995 से विकलांगों के हक हेतु लागू सांवैधानिक व्यवस्था के तहत जारी एक्ट की स्थिति बिहार में बहुत चिंताजनक है। उक्त वक्तव्य पर प्रकाश डालते हुए श्री पिंचा ने बताया कि एक्ट के तहत हर राज्य में विकलांगों के मामलों के लिए एक आयुक्त का प्रावधान है जो उनके हक हेतु सिविल कोर्ट की तरह न्याय व्यवस्था हेतु अधिकृत है तथा उनकी शिकायतों का निपटारा करना उसका कत्र्तव्य है, वार्षिक गतिविधियों की रिपोर्ट तैयार कर सिफारिश समेत सरकार को देना तथा सरकार द्वारा उसके आलोक में एक्शन-टेकन रिपोर्ट समेत सदन पटल पर रखने की जवाबदेही कानून में वर्णित है लेकिन खेदजनक है कि वर्ष 2007 तक बिहार में कोई आयुक्त ही नहीं था, वर्ष 2007 के बाद भी यदा-कदा ही पूर्णकालिक आयुक्त नियुक्त हुए बल्कि आज भी स्वतंत्र प्रभार वालों आयुक्त की जगह पर अपर आयुक्त की नियुक्ति है। ऐसी स्थिति में कानून के अनुपालन की निगरानी और अन्यान्य प्रावधानों का लागू होना कैसे सोचा जा सकता है?
श्री पिंचा ने 1955 से लागू इस एक्ट के तहत हर राज्य में समाज कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में संचालित समन्वय समिति, उसकी बैठकें, निर्णय लागू करने हेतु एक्जीक्यूटिव कमिटी के क्रियाकलाप, उसकी बैठकों के अत्यल्प आँकड़ों का हवाला देते हुए उक्त कानून के न्यूनतम क्रियान्वयन पर चिंता जताई। राज्य स्तर पर विकलांगों के लिए किसी औपचारिक नीति के सन्दर्भ में श्री पिंचा ने विभागीय अधिकारियों द्वारा मसौदा तैयार कर लिए जाने तथा कैबिनेट अपू्रवल के दौर में रहने की वस्तुस्थिति पर भी अफसोस जताते हुए इस पर त्वरित क्रियान्वयन का सुझाव दिया।
विकलांगों के लिए लागू उक्त कानून के थीमैटिक पहलुओं के तहत रोजगार, शिक्षा, गरीबी-उन्मूलन, बाधारहित वातावरण-निर्माण, सामाजिक सुरक्षा वगैरह के चिंताजनक क्रियान्वयन के सन्दर्भ में श्री पिंचा ने बताया कि उक्त कानून की धारा-33 के तहत सभी वर्ग की सभी श्रेणियों में रोजगार हेतु 3 आरक्षण (1: दृष्टिहीन/अल्पदृष्टिबाधित, 1: हियरिंग एम्पेयर्ड, 1: अस्थिबाधित) की व्यवस्था है तथा प्रावधान है कि पद वही आरक्षित हो सकते हैं जो चिन्हित हों। बिहार में वस्तुस्थिति है कि आज तक पदों का चिन्हन नहीं हुआ।
इस सन्दर्भ में श्री पिंचा ने राज्य सरकार को सुझाव दिया कि सबसे पहले पदों की पहचान की जाए। इस प्रक्रिया में विकलांग व्यक्तियों, विकलांग व्यक्तियों के संगठनों तथा उनके लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किए जाने, पहचान के बाद 1996 से लागू कानून के आलोक में सभी वर्षों के बैकलाग भरे जाने, विकलांग महिलाओं की प्राथमिकतापूर्वक नियुक्ति किए जाने हेतु विशेष अभियान चलाने का प्रस्ताव दिया।
श्री पिंचा ने विकलांगों के लिए शिक्षा के सन्दर्भ में बिहार में स्पेशल स्कूल की कमी पर अफसोस जताया लेकिन विकलांग लड़कियों के लिए किए जा रहे विशेष स्कूलों के पहल की सराहना करते हुए इसे अच्छा कदम बताया। श्री पिंचा ने दृष्टिबाधित बच्चों के लिए बिहार में ब्रेल पे्रस के अभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए तत्काल दिल्ली-देहरादून से ई-टेक्स्ट पाठ्यक्रम सुलभ कराने के सुझाव दिए और जल्द से जल्द बे्रल पे्रस की स्थापना हेतु कहा। सर्वशिक्षा अभियान के तहत विकलांगों के लिए राज्य सरकार की विशेष पहल की भी उन्होंने प्रशंसा की।
कानूनी प्रावधानों के तहत गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में विकलांगों के लिए 3: कोटा की उन्होंने चर्चा की। चर्चा-क्रम में श्री पिंचा ने राज्य सरकार के परिपत्र जारी होने मगर हकीकत में उस पर अमल नहीं होने पर अफसोस व्यक्त किया। एक्ट की धारा-43 के तहत विकलांगों द्वारा आवासीय भूखंडों हेतु, लघु उद्योग कर आय-सृजन हेतु, छोटी-मोटी दूकान खोलने हेतु, रिक्रिएशन सेंटर खोलने हेतु, विकलांग के लिए संस्था-संचालन हेतु भूखंड आबंटन संबंधी आवेदन किए जाने पर सरकार द्वारा रियायती दरों पर प्राथमिकतापूर्वक भू-खंड आबंटन किया जाना लाजिमी बताया लेकिन बिहार सरकार द्वारा परिपत्र तो जारी है लेकिन लाभुक का आँकड़ा नहीं रहने की वजह से हकीकत में अमल नहीं हो पाने की वस्तुस्थिति को उन्होंने खेदजनक बताया। श्री पिंचा ने सार्वजनिक परिवहन में विकलांगों के लिए सभी राज्यों में आरक्षण की जानकारी दी लेकिन बिहार में इस बाबत सामाजिक सुरक्षा निदेशालय द्वारा पहल किए जाने पर भी परिवहन विभाग की उदासीनता से आज तक लागू नहीं होने पर उन्होंने गहरा खेद व्यक्त किया।
सरकारी भवनों में विकलांगों के आरक्षण के मुद्ददे पर श्री पिंचा ने एक्सेस आॅडिट करवाने पर जोर दिया ताकि इस संबंध में भी वस्तुस्थिति की जानकारी हो सके।
श्री पिंचा ने अपने संबोधन में कहा कि मैं अपने पद की मर्यादा के तहत विकलांगों के हितों, उनके हकों की रक्षा हेतु कानून के अनुपालन की निगरानी एवं समीक्षा हेतु कई राज्यों में गया हूँ। इसी क्रम में तीन दिनों के बिहार दौरे में 18 फरवरी को समाज कल्याण मंत्री से मुलाकात तथा इस दौरान कानून की समीक्षा की गई, 19 फरवरी को समाज कल्याण सहित अन्यान्य सम्बद्ध विभागों के प्रधान सचिवों/सचिवों से मुलाकात का दौर संपन्न हुआ जिसमें समाज कल्याण तथा शिक्षा विभाग के सचिव उपस्थित थे लेकिन अन्य विभागों के सचिव ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली तथा ऐसे प्रतिनिधियों को भेजा जिनसे वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं मिल सकी। यह रवैया कतई सराहनीय नहीं है। बिहार प्रवास के अंतिम दिन विकलांगों के लिए कार्यरत स्वयंसेवी संस्थानों के प्रतिनिधियों तथा अंत में मुख्य सचिव से मुलाकात के बाद स्थिति में सुधार की उम्मीद उन्होंने जताई। स्वयंसेवी संस्थाओं से मुलाकात-क्रम में बिहार सरकार के अच्छे कार्यों की वजह से प्राप्त आशाजनक परिणामों पर फोकस करते हुए श्री पिंचा ने बताया कि वर्ष 2001 की जनगणना में विकलांगों को प्राप्त प्रमाण पत्र का डाटा बिहार राज्य में 17 था जो आज बढ़कर 46 हो गया है। बहुत कम समय में इतना उत्साहवर्द्धक परिणाम वस्तुतः प्रशंसनीय है लेकिन अभी इस दिशा में कई ठोस कदम उठाकर विकलांगों के लिए मुकम्मल मुकाम हासिल कराने हेतु कटिबद्ध प्रयासों की जरूरत है।
इस मौके पर राज्य के अपर आयुक्त निःशक्तता श्री मोहन राम तथा सामाजिक सुरक्षा निदेशक श्री अनिरूद्ध प्रसाद श्रीवास्तव भी मौजूद थे।