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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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अब "खबरों का खेल” होता है

'विश्व खेल पत्रकारिता दिवस' (2 जुलाई) पर विशेष

आयुष/ खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो

जब तोप मुक़ाबिल हो ,तो अख़बार निकालो

एक ऐसा दौर,जब हर क्षेत्र में पत्रकारिता ने अपनी पांव जमा रखी है, तब पत्रकारिता का स्वरूप ना केवल भव्य और दिव्य हो जाता है बल्कि पत्रकारों के कंधों पर जिम्मेदारियां और बढ़ जाती है।

आज 2 जुलाई, संपूर्ण विश्व इसे विश्व खेल पत्रकारिता दिवस के रूप में मना रहा है। हालांकि खेल पत्रकारिता की शुरुआत साल 1800 में शुरू हो गई थी, लेकिन शुरुआत में इस पर इतना ही ध्यान दिया गया ,जितना एक इंटर्नशिप करते हुए पत्रकार पर दिया जाता है। मगर 1900 से इस क्षेत्र को भी महत्व दिया जाने लगा। 1924 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के दौरान पहली बार विश्व खेल पत्रकार दिवस मनाया गया।

इससे पहले खेल पत्रकारिता में जो पत्रकार अपना भविष्य देखते थे या अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे उनके लिए ना कोई आगे मंजिल नजर आती थी और ना ही साथ में कोई रास्ता। कई काबिल लोग भी इस क्षेत्र में बेहतर होने के बावजूद भी इस क्षेत्र को त्याग दिए।

मगर आज लोग इस क्षेत्र में  सुलभता के साथ अपना मुकाम हासिल कर रहे हैं। आप में से भी कुछ ऐसे लोग हैं जो खेल पत्रकारिता को लेकर अपना भविष्य देखते होंगे।

आज डिजिटल पत्रकारिता के दौर में इसमें विविधता और अवसर दोनों पर्याप्त है। खेल के क्षेत्र में पत्रकार बनने के लिए अब ना तो रास्ते बाधित है और ना मंजिल दूर है।

मगर समस्या यहां यह है कि अब पत्रकार सिर्फ खेल की पत्रकारिता नहीं करते , अब वह इससे बढ़कर पत्रकारिता में ही खेल करते हैं। आम शब्दों में कहा जाए तो अब हर बीट के पत्रकार खेल पत्रकारिता करने लगें हैं। सुनने में थोड़ा आश्चर्य लगेगा, मगर यह सच है कि अधिकांश पत्रकार आज पत्रकारिता में खेल को ला चुके हैं।

एक ऐसा खेल जिसमें "खबरों का खेल होता हो, टीआरपी का खेल होता हो, सच को छिपाने का खेल, बुनियादी सवाल दबाने का खेल, लोगों की आवाज बनने की बदले लोगों को सिर्फ आवाज सुनाने का खेल, सत्य को समर्थन देने की जगह सत्ता को समर्थन देने का खेल, पत्रकारों के मूक बधिर होने का खेल, खबरों को प्रसारित करने का एक ऐसा खेल जिसमें सब कुछ पहले से ही किसी के द्वारा निर्धारित हो, एक ऐसा खेल जिसमें पत्रकार आम आवाम की आवाज नहीं बनते,सत्ता के प्रवक्ता की तरह पत्रकारिता करते हैं, एक ऐसा खेल जिसमें सच और झूठ के बीच अंतर के पहचानना मुश्किल हो जाए..."

चाहे आप वरिष्ठ पत्रकार हों, या कोई नवोदित पत्रकार या फिर कोई आम नागरिक ही क्यों ना हो, खुद को इस चक्की और इस खेल से बचाएं।

आज जब आप में से अधिकांश पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी कर इस क्षेत्र में अपना मुकाम बनाने के लिए कार्यरत हैं, तब यह जरूरी हो जाता है कि आप भी पत्रकारिता के इस खेल की चक्की से बचें और  खेल करनी भी हो तो  सिर्फ ' खेल पत्रकारिता' में ही करें ना कि ' पत्रकारिता में खेल ' करें।

याद रहे,आपको खबरों का संकलन और प्रसारण करना है ना की खबरों का खेल।

बाकी आप सबों में यह चेतना और चिंगारी तो है ही कि आप अपनी कलम से नई रोशनी, नया सवेरा और नया कलाम ला सकें। जिस तरह अब तक इस क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए लालायित हैं उसी तरह आगे भी रहें, ताकि पत्रकारिता को नए बेहतरीन चिराग मिल सके...!

 क्योंकि याद रखिए:-

 जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा ,

किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता ....!

शुभकामनाएं

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सम्पादक

डॉ. लीना