शशांक मुकुट शेखर। कुछ दिन पहले एक खबर आई थी. नोएडा में एक टीवी चैनल में डेस्क पर काम करने वाले एक पत्रकार को काम के प्रेशर की वजह से ऑफिस में ही पैरालीसिस अटैक आया. काम का प्रेशर मीडिया एजेंसियों में आम बात है. कम पैसों में ओवरटाइम वर्क भी आम बात है. मेरे कई मित्र भी दिल्ली और पटना में ऐसी परिस्थितियों में काम कर रहे हैं.
आज न्यूज़ वेबसाइटों की भरमार है. बिहार में भी ऐसे वेबसाइट भरे पड़े हैं. लड़के/लड़कियां मामूली पैसों में दमपेल काम कर रहे हैं. हाल ऐसा है कि उनपर हर रोज 15 से 20 आर्टिकल लिखने का प्रेशर रहता है. पर इनमें से कुछ ही ऐसे हैं जो ग्राउंड में जाकर स्टोरी करके लाते हैं. 15-20 आर्टिकल करने का प्रेशर भी ग्राउंड रिपोर्टिंग करने से रोकता है.
ऐसे में स्टोरी कहाँ से आती है और किस तरह की होती है, यह दिलचस्प है. छोटे शहरों के न्यूज़ वेबसाइटों में काम करने वाले ऐसे लड़के/लड़कियां अलाय-बलाय न्यूज़ चेंपने में माहिर बन जाते हैं. 5-7 बड़े-बड़े वेबसाइट से ख़बरें चुराकर उसमें हेडिंग और कंटेंट में थोड़ा चेंज कर उसे चेंपने के उस्ताद बन जाते हैं. और भी फालतू की ख़बरें भरपूर मात्रा में होती है. ऐसे लड़के/लड़कियों से महीनों में एक भी रिसर्च किया हुआ सॉलिड आर्टिकल लिखने की उम्मीद बेमानी है.
अब बात यह है कि यहाँ-वहां से ख़बरें चुराकर लिखने वाले ये पत्रकार भी सेलेब्रिटी होते हैं. साथ ही खुद को पत्रकार मानने की भयानक ग़लतफ़हमी भी पाल लेते हैं. चूँकि हर दिन थोक में न्यूज़ लिखने के कारण इनके प्रोफ़ाइल में महीने-दो महीने में भी स्टोरी का अंबार लग जाता है. अगर इस अंबार में एक भी ढंग का आर्टिकल खोजने जाएँगे तो आप बेवकूफ हैं.
खैर मैं क्या कहूँ, मेनस्ट्रीम पत्रकार तो हूँ नहीं. कभी-कभार इधर-उधर कुछ लिखकर खुश हो जाता हूँ. पर खुश हूँ कि घटिया और अलाय-बलाय न्यूजों की भीड़ में सेलेब्रिटी बनने से बचा हुआ हूँ. पर कभी-कभी अफ़सोस भी होता.
शशांक के फेसबुक वॉल से साभार।