आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र बिहार की हिन्दी पत्रकारिता के हस्ताक्षर थे। गत 16 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि पर '' महात्मा गांधी और स्वामी सत्यानंद के विचारों के परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता के सरोकार'' पर संगोष्ठी का आयोजन मुंगेर के सूचना भवन में आयोजित किया गया। इस संगोष्ठी में बिहार योग विद्यालय, मुंगेर के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती मुख्य बक्ता थे। पत्रकारिता के संदर्भ में उनके विचार काफी महत्वपूर्ण हैं।प्रस्तुत है इस मौके पर दिया गया उनका व्याख्यान।
दो—ढ़ाई घंटा कैसे बीत गया,पता ही नहीं चला। यहां पर जो आनंद,उमंग और चर्चा हो रही थी, वह सबका ध्यान आकृष्ट कर रही है। जब कुमार कृष्णन जी आए थे,यह कहने के लिए हमलोग आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र की याद में संगोष्ठी करने जा रहे हैं, क्या आप उसमें आ पाएंगें या नही? हमने कहा, हम निश्चित रूप से आएंगे, चाहे विषय जो भी हो। आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्रा से हमारा सबंध आज का नहीं है बल्कि 1965 से है तब मैं पांच साल का था। तब से उनके साथ हमारा संबध रहा है और यह भी बतलाना आनंदवर्धक होगा, वे हमारे हिन्दी के शिक्षक थे और रहे थे।
जब यहां चर्चा हो रही थी पत्रकारिता की, आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्रा के बारे में हमारे आचार्य सत्यानंद जी के बारे में और महात्मा गांधी के बारे में, तब मेरे मन में यह विचार आ रहा था। हमारे समाज में दो शब्दों का प्रयोग करते हैं। एक शब्द है समाज का विकास और दूसरा शब्द है समाज का निर्माण। दोनो का अर्थ अलग होता है। अलग हम देखें तो समाज विकास का जो क्षेत्र है,उसको हम सरकारी तंत्र से जोड़कर देख सकते हैं क्योंकि सरकारी तंत्र का जो कार्य होता है, जनता के लिए सुविधा तथा कौशल उपलव्ध कराने का, ताकि जनता अपने सुख, समृद्धि तथा शांति के मार्ग पर चल सके। परिवार तथा समाज का उत्थान एवं कल्याण दोनों कर सकें। समाज विकास का जो संबध मेरे मन में हे, हो सकता है, गलत भी हो सकता है, लेकिन हमारे मन में उसका संबध है परिवर्तन और व्यवस्था के साथ। लेकिन दूसरे शब्द समाज निर्माण इसका अर्थ होता है विश्व के जनमत के साथ। और देखिए चिंतन के दो रूप होते हैं। एक सकारात्म्क चिंतन, जो जीवन परिवार और समाज कल्याण के लिए होता है। एक नकारात्म्क चिंतन,जो जीवन में चिंता और परेशानी का कारण बनता है। दोनो की उत्पत्ति एक ही है। चिंतन और चिंता दोने के आकार का और नकार का। जब हम अपने प्रयासों से दूसरे का उत्थान और कल्याण करते हैं तो, वह चिंता का रूप नहीं चिंतन का रूप होता है और हमारे देश के जो मनीषी रहे हैं,हमारे देश के जो अच्छे लोग हैं,वे चिंतक हैं। हम आपको एक और तरीके से समझाने का प्रयास करते हैं चिंता और चिंतन में अंतर या भेद। एक मनुष्य यात्रा करता है, लेकिन उसके पास नक्शा नहीं है, मैप नहीं है,उसको हरपल की चिंता होती है कि मैं किस दिशा में जाउं। जिस दिशा में जा रहा हूं,क्या वह सही दिशा है या मेरा रास्ता भटक रहा है। तो जिस व्यक्ति के पास नक्शा नहीं होता है, उसके जीवन में चिंता है। लेकिन जो व्यक्ति समाज के नक्शे को देखता है ओर समझता है,वह चिंतन है। यही अंतर सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच में। हमारे भारत में चिंता करनेवाले ओर चिंतन करनेवाले भी लोग हैं। हम चिंतन करते हैं तो वह समाज के लिए प्रेरणा कार्य होता है। समाज को प्रेरित करते हैं एक आइडिया देकर,एक विचार देकर, एक लक्ष्य देकर,एक उद्देश्य प्रदान करके।
आचार्य लक्ष्मीकांत जी सामाजिक चिंतक रहे हैं,गांधी जी भी सामजिक चिंतक रहे हैं। स्वामी सत्यानंदजी भी सामाजिक चिंतक रहे हैं। यदि वाह्य आवरण को देखेंं तो गांधी जी त्याग और महात्मा के रूप थे। स्वामी सत्यानंद सन्यासी के रूप थे और हमारे आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र सहज और सरल रूप थे। उन्हें कोई अहंकार और अभिमान नहीं था। अब रही समाज निर्माण की बात करे तो जब एक मनुष्य अपने चिंतन द्वारा अपना पथ तय करता है और वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार समाज को आगे बढ़ाने का निर्माण करने का संकल्प लेता है तब उस चिंतन को समाज में प्रसारित करने के लिए जरूरत होती है पत्रकारिता की और पत्रकारिता का अर्थ होता है स्पष्ट विचारों को व्यक्त करना,भ्रांतिपूर्ण विचारों को नहीं। भ्रंतिपूर्ण विचारों से बचते हुए आप जो कहना चाहते हैं उसे कम शब्दों,बाक्यों में कहने की जरूरत है,क्योंकि स्थान उतना ही मिलता है। इसलिए आपको अपना स्पष्ट विचार रखना होता है। इसलिए अपनी ही लेखनी पर आपको स्वयं विचार करना होता है, आप जो लिख रहे हैं, वह सही है या नहीं,पर ध्यान देना होता है। हम जो सोच रहे हैं या व्यक्त कर रहें सही है या नहीं। पत्रकारिता चिंतन की अभिव्यक्ति है और जब उस चिंतन का एक लक्ष्य रहता है। तब बात हो रही थी गांधी जी ने एक आंदोलन किया, तब उस समय लोगों में स्वराज के चिंतन में,उसमें गांधी जी ने एक उत्साह लाया और पूरा समाज का एक लक्ष्य बन गया। इसलिए पत्रकारिता में भी स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है कि मनुष्य संकल्प को लेकर, विचार को लेकर आगे बढ़ रहा है। जब लक्ष्य सामने नहीं हो तो वहां विच्छेद आरंभ हेाता है। मनुष्य के मन का भटकाव आरंभ होता है और फिर पत्रकारिता में, संदेश के प्रसारण में उद्देयय नहीं दिखाई देते।
यहां पर हम जिनलोगों के चिंतन की बात कर रहे हैं। गांधी जी ने अपने चिंतन में भारत के बारे में एक कल्पना की। भारतीय समाज की कल्पना की। जिस प्रकार समाज के भेदों,विचारों को उन्होंने प्रस्तुत किया,उनके विचारों के संप्रेषण का माध्यम बना पत्रकारिता। उसी प्रकार आधुनिक परिवेश में स्वामी सत्यानंद ने चिंतन किया और चिंतन का रूप केवल आध्यात्मिक नहीं था, जब वे बार—बार कहते रहे, उदाहरण देकर गए कि अगर एक परिवार में चार बच्चें हैं,एक सक्षम है,स्फूर्त है,एक कमजोर और अपंग है,तो एक अभिभावक के नाते आप किसका घ्यान रखोगे जो सक्षम है, मजबूत है उनका ख्याल करोगे या ण्क अपंग का, जो कमजोर है उसका ख्याल करोगे। हमारे भारतीय समाज में भी यही परिस्थिति रही है और हमने गलती किया। हमने मजबूत, शिक्षित संतानों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया, जो अपंग था,कमजोर था,उसके लिए नहीं किया। आज समाज में जो अराजकता है, वह इसी कारण है, क्योंकि हमने पूर्व में गलती की है,क्योंकि हमने अपनी कमजोर संतानों का ख्याल नहीं किया। यही मानवता है और स्वामी सत्यानंद सरस्वती का चिंतन है। और यही तो है आज हम सबको चाहिए, समाज को चाहिए ओर हम सब एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, एक दूसरे के उत्थान के लिए कार्य कर सकते हैं। समाज निर्माण के लिए एकत्र हो सकते हैं पहले नीति स्पष्ट करो। आधुनिक परिप्रेक्ष्य ओर संदर्भ को मनुष्य के उत्थान के लिए क्या परिपाटी होनी है,क्या मार्ग होना है,क्या तरीका होना है, इसको तो स्पष्ट किया जाय। देखो भाई हम तो ऐसी परंपरा से जुड़े हैं जो शांति को प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता हैं। इसलिए इस विचारधारा से प्रभावित होकर यह जानने के प्रयास करते हैं कि अशांति के क्या— क्या कारण हैं और इन कारणों का निवारण किस प्रकार साकरात्मक रूप में हो सकती है। इस चिंतन का प्रसारण यदि पत्रकारिता के माध्यम से हो तो हम एक अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैंं। जैसा कि कहा गया सोशल मीडिया में पत्रकारिता प्रवेश कर रहा है। ठीक है सोशल मीडिया अपना काम करे। सोशल मीडिया में छोटी सी बात को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप मिल सकता है। ऐसे में संगठित पत्रकार संघ की क्या भूमिका होनी चाहिए, क्योंकि संगठन के रूप में आप एक आंदोलन का निर्माण करते है और मनुष्य को भटकने से रोके और यह शक्ति आप पत्रकारों के पास है। हमलोग सही विचार व्यक्त् कर सकते हैं, लेकिन उस विचार को प्रसारित करना,जन—जन तक पहुंचाना और मानने के लिए लोगो को प्रेरित करना आदि काम आप पत्रकार करते हैं और कर सकते हैं। आपको समाज को,हमसे अपेक्षा है,सांस्कृतिक, नैतिक,समाज के निर्माण का मार्ग पकड़ा सके। जो साधु अकेले में नहीं, संगठन के रूप में आप कर सकते हैं। तो गांधी और स्वामी सत्यानंद विचारक एवं चिंतक रहे हैं, आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र चिंतक रहे है और सुविधा यह थी कि वे जो सोचते थे,उसको व्यक्त् करने का जो माध्यम,उनके पास था पत्रकारिता था। सकारात्म्क व्यवस्था लाने की दिशा में प्रयास निंरतर जारी रहना चाहिए।